एक इज़हार ने,जिंदगी की दिशा बदल दी। तलब मन की, हमने जाहिर क्या किये, नई चिंगारी को हमने हवा दी।। एक ही रास्ते में, सिमट कर रह गई जिंदगी, हमने खुद अपने हाथों से, अपने ख्वाबों को आग दी। हर ख्वाहिश,हमारी जिंदगी सवारने वाली थी, कहीं दूर बंजर जमीन पर, हमने खुद दफना दी।। बस एक रास्ता चुना, ढेरों ख्वाब ,ढेरों अरमान बुना, हमने खुद, खुद को एक मंजिल दिखा दी। सैंकड़ों पड़े थे पत्थर, कांटो की दीवार थी, कैसा रास्ता चुना हमने, जिस पर जिंदगी वार दी।। वाह क्या थे फैसले,कुछ लम्हे चले जब साथ, अपने फैसले पर, हमने खुद उंगली उठा दी। पछतावा हाथ में रखा था, मंजिल तक तो पहुंचे नहीं, वापसी की उम्मीद, हमने खुद गिरा दी।। अब तन्हा हम, तन्हाई का साथ है, लौट कर कैसे आएं, वो गुजरा वक्त वापस कैसे लाएं, जो अनमोल घड़ी गुजरी जीवन की, उसको कैसे पाएं, बस कुछ सवाल साथ खड़े हैं, जो दुनिया हमारी अपनी, हमने खुद जला दी। धीरे-धीरे खुद को, सजाने की कोशिश जारी की, टूटी उम्मीद, आत्मविश्वास की कड़ियां, फिर हमने, थोड़ी-थोड़ी जोड़ दी।। एक इज़हार ने, जिंदगी की दिशा बदल दी...... ©Yogendra Nath #alonesoul# "एक इज़हार"(कविता)