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उनसे ना हुआ कत्तई इन्तज़ार मेरा शायद अब ना रहा कोई

उनसे ना हुआ कत्तई इन्तज़ार मेरा
शायद अब ना रहा कोई गमगुसार मेरा

जिनके इन्तज़ार मे मैंने उम्र युंही गुज़ार दि
उन पर ना रहा कुछ इख्तियार मेरा

मय्यत पे मेरी रोया था ज़माना ज़ार ज़ार
ना जाने क्यों वो हुआ नही सोगवार मेरा

आया था मेरी मय्यत मे वो छुपकर नकाब मे
अफ़सोस अधूरा रह गया दिदार ए यार मेरा

तू लाख सितम करले ऐ अदू ए आशिक़
हमेशा बचाएगा मुझे अब परवरदिगार मेरा


लेखक
आशिक़ मोमिन #OpenPoetry इन्तज़ार मेरा
उनसे ना हुआ कत्तई इन्तज़ार मेरा
शायद अब ना रहा कोई गमगुसार मेरा

जिनके इन्तज़ार मे मैंने उम्र युंही गुज़ार दि
उन पर ना रहा कुछ इख्तियार मेरा

मय्यत पे मेरी रोया था ज़माना ज़ार ज़ार
ना जाने क्यों वो हुआ नही सोगवार मेरा

आया था मेरी मय्यत मे वो छुपकर नकाब मे
अफ़सोस अधूरा रह गया दिदार ए यार मेरा

तू लाख सितम करले ऐ अदू ए आशिक़
हमेशा बचाएगा मुझे अब परवरदिगार मेरा


लेखक
आशिक़ मोमिन #OpenPoetry इन्तज़ार मेरा
ashiqmomin6560

Ashiq Momin

Bronze Star
New Creator

#OpenPoetry इन्तज़ार मेरा #poem