उनसे ना हुआ कत्तई इन्तज़ार मेरा शायद अब ना रहा कोई गमगुसार मेरा जिनके इन्तज़ार मे मैंने उम्र युंही गुज़ार दि उन पर ना रहा कुछ इख्तियार मेरा मय्यत पे मेरी रोया था ज़माना ज़ार ज़ार ना जाने क्यों वो हुआ नही सोगवार मेरा आया था मेरी मय्यत मे वो छुपकर नकाब मे अफ़सोस अधूरा रह गया दिदार ए यार मेरा तू लाख सितम करले ऐ अदू ए आशिक़ हमेशा बचाएगा मुझे अब परवरदिगार मेरा लेखक आशिक़ मोमिन #OpenPoetry इन्तज़ार मेरा