कुंडलिया छंद: मैंने जिससे की सदा,सीधे मुँह से बात, उससे ही मुझको मिली, सदा घात पर घात।। सदा घात पर घात, रात दिन सता रहा है। कितनी है औकात, हमें भी बता रहा है।। वैरागी कविराय,न जाता कोई कहने। परेशान सब लोग,तमाशा देखा मैनें।। #कुंडलिया