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फिर कोई राज दिल में दबाकर बैठ गया, इक पंछी सूखी डा

फिर कोई राज दिल में दबाकर बैठ गया, इक पंछी सूखी डाल पर जाके बैठ गया..
क्या भला कहे क्या बुरा जमाना, फेर मुँह वो सबसे आँखे दबाकर बैठ गया..
उड़ते हुये आकाश में जो नाप सकता था अम्बर को, इक प्यास लगी चंद बूँद की खातिर नीचे आकर बैठ गया..
न कतरे थे पर उसके न बहेली का वो निशाना था, मायूस खुली हवा से वो, पिंजरे में आकर बैठ गया..
नही कथा ये पंछी की हर इंसा की ये कहानी है, जो चल सकता था जीवन भर चार कदम में बैठ गया।। #panchhivani
फिर कोई राज दिल में दबाकर बैठ गया, इक पंछी सूखी डाल पर जाके बैठ गया..
क्या भला कहे क्या बुरा जमाना, फेर मुँह वो सबसे आँखे दबाकर बैठ गया..
उड़ते हुये आकाश में जो नाप सकता था अम्बर को, इक प्यास लगी चंद बूँद की खातिर नीचे आकर बैठ गया..
न कतरे थे पर उसके न बहेली का वो निशाना था, मायूस खुली हवा से वो, पिंजरे में आकर बैठ गया..
नही कथा ये पंछी की हर इंसा की ये कहानी है, जो चल सकता था जीवन भर चार कदम में बैठ गया।। #panchhivani