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हो कोई महफूज ठिकाना, तो बताओ मुझे। बहुत टूट चुक

 
हो कोई महफूज ठिकाना,  तो बताओ मुझे।
बहुत टूट चुका हूं मैं, अब और न सताओ मुझे ।

शब -  ए  -  इंतज़ार मेरा होता नहीं मुख़्तसर,
कैसे जी जाये ये बेजार जिंदगी कोई बताओ मुझे।

एक दौर था जब होता था खौफ अंधेरे का।
करके बंद आँखें मेरी, कोई चैन की नींद सुलाओ मुझे।

वो जो करता है दावा मुझसे , सिर्फ मेरा होने का।
उसके और भी कई अपने हैं एक एक करके बताओ मुझे।

उसको बड़ा गुमान है, अपने शाह ए शरीर पर।
आख़िर में सभी का मुश्त ए ख़ाक होना है कोई समझाओ उसे।

©alfaaz naama
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