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Life Like रह गया हूं अकेला इस जग में, मुँह फैलाए

Life Like रह गया हूं अकेला इस जग में, 
मुँह फैलाए छल पग पग में। 
दिखावे के मोती नग में, 
जूठा पानी जैसे मग में।
भेदभाव भी खग में, 
लालच भरा रग रग में। 
स्वार्थ लिप्त हर गंध में, 
भ्रमर भ्रमित मकरंद में। 
मोह माया के सब अंध में, 
खुशबु ढूंढते दुर्गंध में। ।
झूठ फरेब के जंग में,
निर्ममता के संग में। 
लबरेज विष के रंग में, 
दृढ़ता से तने  उमंग में। । 
आक्रोश प्रकट करूँ किस ढंग में, 
ज्वाला ज्वलित है हर अंग में। 
होगी नई सुबह स्तंभ में, 
 पर बचा नहीं भार मेरे स्कंध में ।।
written by संतोष वर्मा azamgarh वाले 
खुद की जुबानी। ।

©Santosh Verma
  #akelapan