कुछ धुंधला-धुंधला सा याद है मुझे उसका चेहरा उसे मैं पूरा भूल जाऊ तो मैं आशिक़ नही दिलो का कत्ल करके आशिको को ज़िंदा रखता है ये जमाना और फिर सरेआम कहता फिरता है कि वो कातिल नही धुंआ उठने पर ही क्यू पानी डालते हो तुम लोग ये जो दिल मे चिंगारी जल रही क्या वो आतिश नही सांस रुकने को ही मौत समझते है यहाँ लोग दिल टूटने की भी ख़बर दे ऐसा कोई क़ासिद नही मुझे मेरे इश्क़ ने अब ऐसा पत्थर बन दिया है मैं जिसे सह ना पाऊं ऐसी कोई ताबिश नही कुछ धुंधला-धुंधला सा याद है मुझे.... धुंधला-धुंधला!