चेहरे की क्या ज़रूरत, जब दिल हमारा क़रीब है, रोज़-रोज़ मिलने की, जब निकल रही तरकीब है। ख़्वाबी-ख़यालात से आओ एक नया जहां बनाएँ, फ़ुर्सतों की क्या ज़रूरत, जब उम्दा ये तक़रीब है। तक़रीब- मौका, ज़रिया ♥️ Challenge-663 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।