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मनोभाव...⊙ प्रेम को सम्बंधों से,ऊँचा कहा है ईश्वर

मनोभाव...⊙

प्रेम को सम्बंधों से,ऊँचा कहा है ईश्वर ने...
फिर क्यों तुम सम्बंधों के लिये,प्रेम को त्यागते हो...
प्रेम में विश्वास,सम्मान और त्यागना...
जैसे शब्द केवल,उसके कोषागार के...
कुछ छोटी सी,भावनाओं के स्तम्भ हैं...
प्रेम इनसे श्रेष्ठ है और सुंदर भी,तो क्यूँ ना तुम…
प्रेम को स्वीकृत कर,ईश्वर का प्रसाद समझ कर…
उसे ग्रहण करो,उसका सम्मान करो...
जीवन में प्रेम एक ही बार हो,ये कदाचित् सत्य नहीं...
किन्तु जीवन में एक बार भी हो,तो गहरा और पवित्र होना चाहिए…
येही कटू सत्य है,जो के शायद कोई सुनना नहीं चाहता...
सब प्रेम में भुल जाते हैं के,मोह... उत्तेजना... 
व्याकुलता... वासना,सभी प्रेम के अंश हैं...
लेकिन जो प्रेम में ये सब देखे,वो प्रेमी नहीं केवल…
आपके ऊपर आकर्षित हैं...
और आकर्षण बूरा नहीं केवल लोभमय है...
निर्मोही होना सही नहीं,वहीं मोह ही व्याकुलता को...
निराधार बनाना उससे भी बहुत बूरी बात...
तो क्यों न हम प्रेम की बात,सुनकर केवल प्रेम करें...
उसे अपनाएँ जैसा है,जिस प्रकार से है...
क्यों कि आप जीवन में,प्रेम अनेकों से कर लेंगे...
लेकिन आपसे प्रेम केवल एक करता है...
और वो भी आत्मा से,क्यों कि वो आपके सौंदर्य को नहीं...!
बल्कि आपके मन की #निर्मला को समझता है...
और आपके लिये जीवन को सरल बनाना चाहता है...
सम्भव हो के वो इसी कारण के चलते...
आपसे अपना प्रेम छिपा रहा है,परन्तु आपकी हर गतिविधी में...
उसका एक सहज योगदान हो रहा होता है...
प्रेम को अपमानित नहीं,केवल उसे सम्मानित कीजिए ...!
क्यों कि या तो आपके,भीतर छिपे मन_में प्रेम है...
या प्रेम नाम की किसी वस्तु को,आप जानते ही नहीं ॥

©purvarth #Prem
मनोभाव...⊙

प्रेम को सम्बंधों से,ऊँचा कहा है ईश्वर ने...
फिर क्यों तुम सम्बंधों के लिये,प्रेम को त्यागते हो...
प्रेम में विश्वास,सम्मान और त्यागना...
जैसे शब्द केवल,उसके कोषागार के...
कुछ छोटी सी,भावनाओं के स्तम्भ हैं...
प्रेम इनसे श्रेष्ठ है और सुंदर भी,तो क्यूँ ना तुम…
प्रेम को स्वीकृत कर,ईश्वर का प्रसाद समझ कर…
उसे ग्रहण करो,उसका सम्मान करो...
जीवन में प्रेम एक ही बार हो,ये कदाचित् सत्य नहीं...
किन्तु जीवन में एक बार भी हो,तो गहरा और पवित्र होना चाहिए…
येही कटू सत्य है,जो के शायद कोई सुनना नहीं चाहता...
सब प्रेम में भुल जाते हैं के,मोह... उत्तेजना... 
व्याकुलता... वासना,सभी प्रेम के अंश हैं...
लेकिन जो प्रेम में ये सब देखे,वो प्रेमी नहीं केवल…
आपके ऊपर आकर्षित हैं...
और आकर्षण बूरा नहीं केवल लोभमय है...
निर्मोही होना सही नहीं,वहीं मोह ही व्याकुलता को...
निराधार बनाना उससे भी बहुत बूरी बात...
तो क्यों न हम प्रेम की बात,सुनकर केवल प्रेम करें...
उसे अपनाएँ जैसा है,जिस प्रकार से है...
क्यों कि आप जीवन में,प्रेम अनेकों से कर लेंगे...
लेकिन आपसे प्रेम केवल एक करता है...
और वो भी आत्मा से,क्यों कि वो आपके सौंदर्य को नहीं...!
बल्कि आपके मन की #निर्मला को समझता है...
और आपके लिये जीवन को सरल बनाना चाहता है...
सम्भव हो के वो इसी कारण के चलते...
आपसे अपना प्रेम छिपा रहा है,परन्तु आपकी हर गतिविधी में...
उसका एक सहज योगदान हो रहा होता है...
प्रेम को अपमानित नहीं,केवल उसे सम्मानित कीजिए ...!
क्यों कि या तो आपके,भीतर छिपे मन_में प्रेम है...
या प्रेम नाम की किसी वस्तु को,आप जानते ही नहीं ॥

©purvarth #Prem