#OpenPoetry *आग़* है जो क़ैद सीने में तेरे, आग़-ए-दरिया, तु निकल, चल बांध, कफ़न केसरिया। कुछ इस क़दर तुझे ख़ुद को तपाना है, जैसे आग़ को आग़ से आग़ में जलाना है। मुर्द-सम है जो और जल नहीं सकता, तु भास्कर चैतन्य, कभी ढल नहीं सकता। मशाल है अनंत चिर, बढ़ते अभय जाना है, चीर डाले गिरि-यंत्रणा, बाहु वो अपनाना है। कौन बतलाए है मृदु, ये मारुत-ए-हैज़िंदगी, पर अमन की तलाश में, तु, बंदे, गोशा-नशीं। क्या चिंगारी तेरे अाड़े, हितसाधन बस करता चल, तु आग है, ए अनवरत, बढ़ता चल, बस बढ़ता चल।। @ias_kashinath_jalay (Kashinath Jalay) #fire #aag #love #poem #shayari #follow #new #trending