#OpenPoetry {••••••मन••••••} इस तन पर और मन पर व्यापित हैं जग की पीड़ा तन हर्षित मन कुलपति फिर मन भए व्यकुलाए मन कुंठित तन कर्म करे तन कुंठित मन रोए असुअं में जब धीर हरे तब सिसक सिसक बिखराए तेरी पीड़ा " सौं " तू जाने फिर भी रहे छिपाए जग जानै मन मोरे खेल करै सब कोई तू बस ठहरा कोरा कागज तुझ संग मीत करै ना कोई "जो जन जस मन तस तुझ संग करे अनुरागी" प्रीति वचन सब मोह आगंतुक बैरागी तुझ झोंके विरह की अग्नी खुद रात करै रंगीनी मन तू कोमल, निश्छल, निर्मल तोहे छलै सब कोई। (मेरी डायरी से) #OpenPoetry {••••••मन••••••}