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इसी उम्मीद की इस रात के बाद सुबह होगी हम आँखे मूंद

इसी उम्मीद की इस रात के बाद सुबह होगी
हम आँखे मूंदे हुए मर रहे है

ये अंधेरे जिनका कोई सिरा ही न हो
यहाँ जुगनुओं की उम्मीद कर रहे है

हम जो लोगो को मौत की खबरे सुनाया करते थे
आज हम भी मौत से डर रहे है

ये नाउम्मीदी हमे इतना क्यूँ घेर रही
हम कौन सा कभी इसके घर रहे है

हमारी मेहनत का भी श्रेय लेने वाले
आज अपनी नाकामियों से मुकर रहे है

इन घरो से अपने महलो को और सज़ा लेना
जिन घरों के छप्पर उखड़ रहे है

ये शैतान जो खुद को बेकसूर कह रहे
इनके हर उंगलियों पर 100-100 सर रहे है

©क्षत्रियंकेश छप्पर!
इसी उम्मीद की इस रात के बाद सुबह होगी
हम आँखे मूंदे हुए मर रहे है

ये अंधेरे जिनका कोई सिरा ही न हो
यहाँ जुगनुओं की उम्मीद कर रहे है

हम जो लोगो को मौत की खबरे सुनाया करते थे
आज हम भी मौत से डर रहे है

ये नाउम्मीदी हमे इतना क्यूँ घेर रही
हम कौन सा कभी इसके घर रहे है

हमारी मेहनत का भी श्रेय लेने वाले
आज अपनी नाकामियों से मुकर रहे है

इन घरो से अपने महलो को और सज़ा लेना
जिन घरों के छप्पर उखड़ रहे है

ये शैतान जो खुद को बेकसूर कह रहे
इनके हर उंगलियों पर 100-100 सर रहे है

©क्षत्रियंकेश छप्पर!
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