दहक रही है तीलियां, मिटाने को खुद का वजूद, खुद तो

दहक रही है तीलियां, मिटाने को खुद का वजूद,
खुद तो जलके होगी राख़,औरो को करेगी खाक। #तीली#
दहक रही है तीलियां, मिटाने को खुद का वजूद,
खुद तो जलके होगी राख़,औरो को करेगी खाक। #तीली#
jagdishprasadlod3535

J P Lodhi.

Silver Star
Growing Creator
एक  तीली  का  महत्व  तब  पता  चलता  है, 
जब  करोड़ों  की सम्पत्ति धू धू कर जलता है। 
  जलती  है एक तीली  जब  गरीब के तहखाने में,
   मुस्किल से बनता है एक निवाला गरीब खाने में।
  गरीब  खाने की  खुशियों  का पता तब चलता है
   जब हर  शाम उनके घर में एक तीली जलता है।।
जलती तीली से मुझे एक घटना क्रम याद आती है
        जब उस कराके की ठण्ड में एक तीली सौ की जान बचाती है। ##एक तीली ##
एक  तीली  का  महत्व  तब  पता  चलता  है, 
जब  करोड़ों  की सम्पत्ति धू धू कर जलता है। 
  जलती  है एक तीली  जब  गरीब के तहखाने में,
   मुस्किल से बनता है एक निवाला गरीब खाने में।
  गरीब  खाने की  खुशियों  का पता तब चलता है
   जब हर  शाम उनके घर में एक तीली जलता है।।
जलती तीली से मुझे एक घटना क्रम याद आती है
        जब उस कराके की ठण्ड में एक तीली सौ की जान बचाती है। ##एक तीली ##
kundanspoetry7099

KUNDAN KUNJ

Bronze Star
New Creator
वो अक्सर रास्ते पे मिल जाती।निगाहे चार होती,पर बात न हो पाती।गोरे भरे गाल,नीली - नीली आंखे। जींस टॉप में कसा बदन,मुझे जन्नत की हूर लगती।कैसे बात शुरू करू ?कोई जतन काम न आया।रोज के मुलाकात से ढांढस मिलता, उत्साह बढ़ता।उसकी नीली आंखों में खो जाने को आतुर रहता।सारा दिन उसी की याद में मगन रहता।हिम्मत करके उसे प्रेम पत्र थमा आया।सारी रात वो मेरे सपनों में आती रही।मेरी बाहों में सोती रही।अगले दिन से मेरे जीवन मैं बहार आने वाली थी ।ये तो महज एक सपना था।हकीकत में गोरे,भरे बदन की अप्सरा; नीली आंखों वाली जन्नत मेरी होने वाली थी। भोर में ही जाग गया।तैयार होकर निकल पड़ा।दो घंटे रास्ते नापने के बाद मेरी जिंदगी नज़र आ ही गई।आज वो सुर्ख गुलाब सी नजर आ रही थी। आ.. हा..,मेरी स्वपन राजकुमारी ! इसे देख कर दोस्त सब जल मरेंगे।गोरे रंगत पे गुमान करने वाली, सारी भाभी अंगूठा रगड़ - रगड़ के अपने खून को जलाएंगी।आने वाले पल में वो मेरी हमदम,मेरी जान और मेरी महबूबा होगी।मैं उसको देखकर मुसकुराया।पर...वो संयत रही।कोई भी खुशी के भाव उसके चेहरे से नदारत थी।वो मेरे पास आई और बोली," भैया...! इसकी जरूरत मुझे नही है।इस पर हक किसी और का होगा। मैं तो इस खुश्क रास्ते से गुजर चुकी हूं...और वर्तमान में एक पति तथा दो बच्चों की मां भी बन चुकी हूं।"
थोड़ी ही दूर पर एक उभरी तोंद वाला,सर पर गिने चुने बालों को ऐसे सहेज रहा था... मानो कई दिनों से भूखा - प्यासे को बिरयानी ले जाने का ऑफर मिला हो।ये क्या से क्या हो गया।मेरी बात बनते - बनते बिगड़ गई।कहा हुस्न की मल्लिका से शुरुआत हुई थी...एक गंजे की बीबी और दो बच्चों की मां पर खत्म हो गई।

©Sapan Kumar Ghosh
  # Poetry month नीली - नीली आंखे।
play

# Poetry month नीली - नीली आंखे। #कॉमेडी

211 Views