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उदासी भरे जुदाई के वो पैगाम पढ़ छलके थे निगाहों के

उदासी भरे जुदाई के वो पैगाम
पढ़ छलके थे निगाहों के जाम
रात शाखों पे ठहरे ओस इनाम
गुलशन को बनाते थे शमशान
विरह वेदना के थे जो अंजाम।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
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