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स्वार्थों की बस्तियाँ, झूठे वादों के अंबार हैं बिक

स्वार्थों की बस्तियाँ, झूठे वादों के अंबार हैं
बिकते इक पल पल यहाँ जिनके दिलों मे ख़ार हैं
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       दामन संभाले रखना जिस्मों के इस शहर में
       ये तेरे मुँह पे तेरे हैं पीठ पे करते वार हैं II
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©Kuldeep Dahiya "मरजाणा दीप"
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