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कविता _ पितृ पक्ष में पितरों पिंडदान। जिंदा रहे त

कविता _ पितृ पक्ष में पितरों पिंडदान।

जिंदा रहे तो जी भर कर सेवा सत्कार किया नही।
बाद मरने के माता पिता को मान पितृ देव तो देखो।

सभ्यता और संस्कृति के बिना समाज कोई चलता नही।
छोटे बड़ो के सम्मान और प्यार के बीना परिवार रहता नही।
शुरू हुआ पितृ पक्ष का समय पितरों को अर्पण तर्पण करना है।
नियम व्रत पिंड दान अन्न दान जल दान उनको समर्पण करना है।
पूर्वज हो प्रसन्न मिले मोक्ष और मुक्ति नाम उनके हवन कर के तो देखो।

पुजो चाहे लाख देवी और देवता अन्न और धन संपदा पितर ही देते।
बन के कृपालु और दयालु परिवार का हर बिपदा ,कर्जा  सब हर लेते।
जितना किया जिंदगी में मान उससे ज्यादा अब देना है सम्मान।
जितना करोगे उतना पाओगे पितरों की कृपा होगा घर का कल्याण।
सात पुश्तों को देखा नही मगर नाम उनका आज लेकर तो देखो।

कासी गया प्रयागराज और हरिद्वार के गंगा घाट पर पिंडदान है होता।
देश विदेश के हिंदुओ का पितृ पक्ष में गया विष्णुपाद महादान है होता।
किया नही गर पिंडदान पितर दर बदर भटकेंगे साथ तुमको लपेटेंगे।
पैसे पैसे के होगे मोहताज धन दौलत कुल क्षति कर्जा में रपेटेंगे।
मांग कर क्षमा सबसे सपरिवार चरण पितरों नमन कर के तो देखो।

©Ram Singh
  #Pinddan#