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मैं अबस अपनों में अस्क़ाम हजारों लेकर घर के रद्दी

मैं अबस अपनों में अस्क़ाम हजारों लेकर घर के रद्दी जैसा था
जब आशुफ़्तज़दा हुआ तो खुश कन्दा मुझको अग्यारों ने देखा है

अबस- व्यर्थ. अस्क़ाम-बुराईयां. आशुफ़्तज़दा- भटकता. कन्दा-गढ़ा हुआ, नक्काशीदार. अग्यारों- अजनबी, प्रतिद्वंदी..

(धीरज गर्ग) #nojoto #poetry #poem #kavishala
मैं अबस अपनों में अस्क़ाम हजारों लेकर घर के रद्दी जैसा था
जब आशुफ़्तज़दा हुआ तो खुश कन्दा मुझको अग्यारों ने देखा है

अबस- व्यर्थ. अस्क़ाम-बुराईयां. आशुफ़्तज़दा- भटकता. कन्दा-गढ़ा हुआ, नक्काशीदार. अग्यारों- अजनबी, प्रतिद्वंदी..

(धीरज गर्ग) #nojoto #poetry #poem #kavishala