अपने ही मन का,मारा मन ! फिरता रहता,आवारा मन !! मंडराता फूलों,कलियों पर, तितली सा ये,बंजारा मन !! पतझड़ के मौसम मे लगता, तन्हा,तन्हा,बेचारा मन !! ये पूस की आधी रात औऱ, ये आसमान का,तारा मन !! ✍️✍️ रवि श्रीवास्तव ©Ravi Srivastava #lonely