राज के राज़ ऊँचे पहुँच की कद जो पा ले क्या शर्म लाज हया उसे भाये अश्लीलता को तख़्त पे बिठाये ऊँचे हस्ती के नाम में अकड़े गर राज गहरे कोई जो खोले ये रूपये का कद उसको औंधे सच झूठ के मिलाये मसले में ज़मीर अपने वो रौंद के चलते पर वक़्त कहा बख्शे किसको सामने लाये दबाये किस्से को नग्न हुआ इस सख्श को देखो हारकर खुद से जिस्म ज़ुए में बयान खोखले वो किसको देंगे आया सामने जो कैसे छिपेगा है जो नहीं वो कैसे दिखेगा दिखाया है जो वो है ही नही छिपाया गया सब कहीं न कहीं दिल में दबाये धंधे के काज़ को संगिनी है उसकी हमराज़ जो पर्दे पर दिखता था जो राज वो क्यूँ छिपाये है पीछे अब खुद को दूर कहाँ तक वो दौड पायेगा मुह खुद से क्या चुरा पायेगा गंदे धंधे अपने कहाँ दफ़नायेगा क्या नग्नता अपनी ढँक पायेगा? ©Deepali Singh राज के राज़