शरीर एक बदलता हुआ प्रवाह हैँ और मन भी लेकिन ज़ब कोई उन्हे किनारा समझ लेता हैँ... वो निश्चित ही डूब जाता हैँ न ये शरीर तट हैँ न ये मन तट हैँ. लेकिन इन दोनों के पीछे जो चैतन्य हैँ. साक्षी हैँ द्रष्टा हैँ. वह अपरिवर्तित नित्य बोधगम्य ही वास्तविक तट हैँ जो अपनी नौका. उस तट पर बाँधते हैँ. वही अमृत क़ो उपलब्द होते हैँ.🥰 "osho " ©Parasram Arora तट..... #we