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तू मेरे मन की क्या कहे ; तू अपने मन की बोल !

तू मेरे मन की  क्या  कहे ;
तू  अपने मन  की  बोल !
क्यों  मेरे मुख से चाहता ;
अपने   मन    के    बोल ?

कांटे भी थे फूल भी ;
इस जीवन के नाम ।
तुम फूलों के वास्ते ;
सदा  हुए  बदनाम ।

गर तुझको इनकार था 
तो  कर  देते   इनकार ,
बे  मन  क्यों  ढोते  रहे,
मेरे    मन   का   भार ।

तुझको पलकों में रखा 
हुई   क्या  हमसे   भूल
फूलों  की   उम्मीद  थी 
तुम   चुभा  रहे  थे शूल

मन के अंदर जहर है
बाहर   है     मुस्कान
अंदर  तो   शैतान   है
बाहर    से    इंसान ।
 
 सुख बस टीले से रहे ,
 गम  के   बने   पहाड़ ,
 मन के  जीते जीत है ,
 मन   के   हारे   हार ।
 
सोच बना ली आपने ,
दुखिया  सब   संसार,
सुख दर्शन होंगे कहाँ,
मन  ही  जब  बीमार ।

©Yashpal singh gusain badal' तू मेरे मन की क्या कहे ;
तू अपने मन की बोल !
क्यों मेरे मुख से चाहता ;
अपने मन के बोल ?

कांटे भी थे फूल भी ;
इस जीवन के नाम ।
तुम फूलों के वास्ते ;
तू मेरे मन की  क्या  कहे ;
तू  अपने मन  की  बोल !
क्यों  मेरे मुख से चाहता ;
अपने   मन    के    बोल ?

कांटे भी थे फूल भी ;
इस जीवन के नाम ।
तुम फूलों के वास्ते ;
सदा  हुए  बदनाम ।

गर तुझको इनकार था 
तो  कर  देते   इनकार ,
बे  मन  क्यों  ढोते  रहे,
मेरे    मन   का   भार ।

तुझको पलकों में रखा 
हुई   क्या  हमसे   भूल
फूलों  की   उम्मीद  थी 
तुम   चुभा  रहे  थे शूल

मन के अंदर जहर है
बाहर   है     मुस्कान
अंदर  तो   शैतान   है
बाहर    से    इंसान ।
 
 सुख बस टीले से रहे ,
 गम  के   बने   पहाड़ ,
 मन के  जीते जीत है ,
 मन   के   हारे   हार ।
 
सोच बना ली आपने ,
दुखिया  सब   संसार,
सुख दर्शन होंगे कहाँ,
मन  ही  जब  बीमार ।

©Yashpal singh gusain badal' तू मेरे मन की क्या कहे ;
तू अपने मन की बोल !
क्यों मेरे मुख से चाहता ;
अपने मन के बोल ?

कांटे भी थे फूल भी ;
इस जीवन के नाम ।
तुम फूलों के वास्ते ;

तू मेरे मन की क्या कहे ; तू अपने मन की बोल ! क्यों मेरे मुख से चाहता ; अपने मन के बोल ? कांटे भी थे फूल भी ; इस जीवन के नाम । तुम फूलों के वास्ते ; #कविता #fullmoon