एक नजर से देखा तो देखने में आया लोगों की जुबान चलती हुई
जैसे चलता है आरा लकड़ियों पर
पतंग बनाकर उड़ा दी गई वो बहुत सारी पंक्तियां जो लिखी होती है धार्मिक किताबों में उपदेशों में और सुबह सुबह लगने वाले तुम्हारे सोशल मीडिया पोस्टरों में
निकाल दी गई सहानुभूतियों की किलकारियां तुष्टीकरण में