माता के दरबार की , यात्रा भी थी खूब ।
देख मनोरम दृश्य वह , अखिया जाती डूब ।।
अखियां जाती डूब , मातु के दर्शन करके ।
जिया न उठती हूक , मातु की महिमा सुनके ।।
जयकारे की गूँज , भक्त के मन हर्षाता ।
व्यथा सुनाने भक्त , द्वार ही जाता माता ।।
२१/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर #कविता