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माता के दरबार की , यात्रा भी थी खूब । देख मनोरम द

माता के दरबार की , यात्रा भी थी  खूब ।
देख मनोरम दृश्य वह , अखिया जाती डूब ।।
अखियां जाती डूब , मातु के दर्शन करके ।
जिया न उठती हूक ,  मातु की महिमा सुनके ।।
जयकारे की गूँज , भक्त के मन हर्षाता  ।
व्यथा सुनाने भक्त , द्वार ही जाता माता ।।

२१/०४/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR माता के दरबार की , यात्रा भी थी  खूब ।
देख मनोरम दृश्य वह , अखिया जाती डूब ।।
अखियां जाती डूब , मातु के दर्शन करके ।
जिया न उठती हूक ,  मातु की महिमा सुनके ।।
जयकारे की गूँज , भक्त के मन हर्षाता  ।
व्यथा सुनाने भक्त , द्वार ही जाता माता ।।

२१/०४/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर
माता के दरबार की , यात्रा भी थी  खूब ।
देख मनोरम दृश्य वह , अखिया जाती डूब ।।
अखियां जाती डूब , मातु के दर्शन करके ।
जिया न उठती हूक ,  मातु की महिमा सुनके ।।
जयकारे की गूँज , भक्त के मन हर्षाता  ।
व्यथा सुनाने भक्त , द्वार ही जाता माता ।।

२१/०४/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR माता के दरबार की , यात्रा भी थी  खूब ।
देख मनोरम दृश्य वह , अखिया जाती डूब ।।
अखियां जाती डूब , मातु के दर्शन करके ।
जिया न उठती हूक ,  मातु की महिमा सुनके ।।
जयकारे की गूँज , भक्त के मन हर्षाता  ।
व्यथा सुनाने भक्त , द्वार ही जाता माता ।।

२१/०४/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

माता के दरबार की , यात्रा भी थी खूब । देख मनोरम दृश्य वह , अखिया जाती डूब ।। अखियां जाती डूब , मातु के दर्शन करके । जिया न उठती हूक , मातु की महिमा सुनके ।। जयकारे की गूँज , भक्त के मन हर्षाता । व्यथा सुनाने भक्त , द्वार ही जाता माता ।। २१/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर #कविता