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हाँ, लकीरें- आड़ी तिरछी थककर, झुंझलाहट भरे मेरे हाथ

हाँ, लकीरें- आड़ी तिरछी
थककर, झुंझलाहट भरे मेरे हाथों से निकल
परछाईयाँ ये बीते सालों की, तुम्हारा ही वो शक्लोसूरत!
तार-तार छिन्नी-छिन्नी 
बेजान कतरनें महज कागज की
गल गल सी जाती, और
जा जाकर होती हैं जमा
काईयों-सा किनारे किनारे, फटेहाल
हैं हिलती-डुलती रह-रहकर मेरे मनस्सरोवर में

tum_aayee_ho @manas_pratyay #tum_aayee_ho © Ratan Kumar
हाँ, लकीरें- आड़ी तिरछी
थककर, झुंझलाहट भरे मेरे हाथों से निकल
परछाईयाँ ये बीते सालों की, तुम्हारा ही वो शक्लोसूरत!
तार-तार छिन्नी-छिन्नी 
बेजान कतरनें महज कागज की
गल गल सी जाती, और
जा जाकर होती हैं जमा
काईयों-सा किनारे किनारे, फटेहाल
हैं हिलती-डुलती रह-रहकर मेरे मनस्सरोवर में

tum_aayee_ho @manas_pratyay #tum_aayee_ho © Ratan Kumar