'अधूरी कविता' मैं अपने समय का एक अधूरा कवि! जो शायद अब तक न हो सका मुकम्मल अपने माँ का सबसे छोटा बेटा जो खड़ा नहीं अबतक अपने पैरों पर इस तरह से माँ का अधूरा बेटा हूँ! अपने भाईयों पर आश्रित उनका नकारा भाई अपने भौजाईयों की बातें अनसुनी करने वाला उनका अनुशासनहीन देवर ! कुछ दोस्तों के लिए स्वार्थी, तो कुछ दोस्तों के लिए बुरे वक्त में सलाहकार ताल,लय,छंद से परे अपनी कविताओं में हूँ अधूरा एक गँवईं की तरह! जीवन के इस अधूरेपन में तलाशता अपने मुकम्मल होने के वजूद कविता के सानिध्य ने मुझे बचाए रखा है कविता ने मुझे हर रोज जिलाया है अपने अधूरे कविताओं के साथ लिखना चाहता हूँ कोई ऐसी कविता जो बनाए मुझे इक दिन मुकम्मल इंसान! *****अजय अजय कुमार सिंह #अधूरी कविता