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आत्ममंथन पेट के लिए भोजन, सांस के लिए पवन, पीने क

आत्ममंथन

पेट के लिए भोजन, सांस के लिए पवन, पीने के लिए पानी और वह सबकुछ जिनपर हम मानव प्रजाति का अस्तित्व निर्भर है, वह केवल और केवल प्रकृति यानी धरती है, जो मां की तरह हमारी हर ज़रूरत को पूर्ण करती है वह भी बिना किसी स्वार्थ एवं भेदभाव के, वह मां जो ना धर्म देखती है और नाही जाति, परंतु हां वह अपने बच्चों को दंडित भी करती है जिसे हम प्राकृतिक आपदा कहते है, मगर उसी धरती मां की हम संताने ज़्यादा शरारती हो गए है, हम धर्म को खेल, कर्म को मजाक और मर्म को महत्वहीन समझने लगा है, इसलिए हम मानव प्रजाति सबसे ज़्यादा दंडित स्वयं के बनाए कृत्रिम आपदा से होते है, इसलिए कृपया आत्ममंथन करें, क्योंकि धरती पर जन्म लेकर आपने धरती पर नही धरती ने आपपर मेहरबानी की है।

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