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****** कर्ण-कुंती संवाद ****** हूँ सूत पुत्र या सू

****** कर्ण-कुंती संवाद ******
हूँ सूत पुत्र या सूर्य पुत्र , मन अब तक मेरा संकित है |
कुंती जैसी माता से तो, ममता का नाम कलंकित है ||
छोड़ मुझे मृत्यु के मुख में, तुमने किस पर उपकार किया |
अगर जना था तूने मुझको, फिर क्यों नहीं स्वीकार किया ||
जिसके धनुष की टंकार से, पूरा कुरुछेत्र थर्राता है |
वही सिंह तुझ जैसी माता को, माँ कहने से घबराता है ||
ज्ञानियों के उस भरी सभा में जब सब ने मुझको धिक्कारा था |
 वो तो था मित्र दर्योधन मेरा जिसने मुझे स्विकारा था ||
दुष्कर्मी हो भले दर्योधन पर उसने मुझको साध लिया,
मित्र नाम की डोरी से , है उसने मुझको बाँध लिया ||
रखो बचा कर अश्रु अपने , ये कल फ़िरतुम्हे बहानी है |
मिर्त्यु तो सब को आनि , चाहे वो ज्ञानी या अज्ञानी है  ||
देख स्वपन में अर्जुन को मरता, अब ममता तेरी जागी है |
है छह पुत्रों की बांझन माँ, तू कितनी बड़ी अभागी है ||
देख रक्त है सब की आँखों में, हर योद्धा यंहा सुसजित है |
जा लौट जा तू इस कुरुछेत्र से, यंहा स्त्रियों का आना वर्जित है ||
भेजा है क्या कृष्ण ने तुझको, या विश थैली संग में लाई हो |
ममता की आँचल फैला कर, क्या मेरी मृत्यु मांगने आई हो ||
मेरे द्वार पर आने वाले, हर याचक का होता सम्मान यंहा |
तू रहेगी पांच पुत्रों की माता, ये कर्ण का तुझे वरदान रहा ||
कल सभी लड़ेंगे रण भूमि में, ये कर्ण भी वही होगा |
मारेंगे वो छल से मुझको, फिर भी अधर्म नही होगा ||
कौन है धर्मी कौन अधर्मी, इन् बातो से मन संकित है |
पर “स्याही” के हिर्दय के पन्नो पर, बस  कर्ण नाम हीं अंकित है ||

रचना : गिरीश "स्याही" Karn.. A Hero or Villain?
****** कर्ण-कुंती संवाद ******
हूँ सूत पुत्र या सूर्य पुत्र , मन अब तक मेरा संकित है |
कुंती जैसी माता से तो, ममता का नाम कलंकित है ||
छोड़ मुझे मृत्यु के मुख में, तुमने किस पर उपकार किया |
अगर जना था तूने मुझको, फिर क्यों नहीं स्वीकार किया ||
जिसके धनुष की टंकार से, पूरा कुरुछेत्र थर्राता है |
वही सिंह तुझ जैसी माता को, माँ कहने से घबराता है ||
ज्ञानियों के उस भरी सभा में जब सब ने मुझको धिक्कारा था |
 वो तो था मित्र दर्योधन मेरा जिसने मुझे स्विकारा था ||
दुष्कर्मी हो भले दर्योधन पर उसने मुझको साध लिया,
मित्र नाम की डोरी से , है उसने मुझको बाँध लिया ||
रखो बचा कर अश्रु अपने , ये कल फ़िरतुम्हे बहानी है |
मिर्त्यु तो सब को आनि , चाहे वो ज्ञानी या अज्ञानी है  ||
देख स्वपन में अर्जुन को मरता, अब ममता तेरी जागी है |
है छह पुत्रों की बांझन माँ, तू कितनी बड़ी अभागी है ||
देख रक्त है सब की आँखों में, हर योद्धा यंहा सुसजित है |
जा लौट जा तू इस कुरुछेत्र से, यंहा स्त्रियों का आना वर्जित है ||
भेजा है क्या कृष्ण ने तुझको, या विश थैली संग में लाई हो |
ममता की आँचल फैला कर, क्या मेरी मृत्यु मांगने आई हो ||
मेरे द्वार पर आने वाले, हर याचक का होता सम्मान यंहा |
तू रहेगी पांच पुत्रों की माता, ये कर्ण का तुझे वरदान रहा ||
कल सभी लड़ेंगे रण भूमि में, ये कर्ण भी वही होगा |
मारेंगे वो छल से मुझको, फिर भी अधर्म नही होगा ||
कौन है धर्मी कौन अधर्मी, इन् बातो से मन संकित है |
पर “स्याही” के हिर्दय के पन्नो पर, बस  कर्ण नाम हीं अंकित है ||

रचना : गिरीश "स्याही" Karn.. A Hero or Villain?

Karn.. A Hero or Villain?