जब ख़ामोशी कहर मचाए आवाज़ अंदर ही अंदर कहीं दब जाए जब खुशियों से कहीं दर हो जाए और दर्द ही हमदर्द बन जाये तब जीने की सजा हमसे पूछिए,,,, जब ज़ख्म नासूर बन जाए जिंदगी मौत की मुराद बन जाए जब हँसते लबों से भी आँसू आए जब आँखों का नीर सूख जाए तब जीने की सजा हम से पूछिए,,। तब जीने की सज़ा हम से पूछिए,,,