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खिला आकाश है धरती खिली मौसम भी खिला खिला सा है फि

खिला आकाश है धरती खिली 
मौसम भी खिला खिला सा है
फिर भी मन के अंधकार का
उजलापन धुंधला सा है


जाने क्या जो साल रहा है
अन्दर ही अन्दर हमको
जाने किन कटु स्मृतियों ने
बांध रखा हदयान्तर को


क्या-क्या छूटा हाथ लगा क्या
लेखा-जोखा क्या करना
जो बीता सो बीत चुका है
बीते को फिर क्या जीना


मन खालीपन से बोझिल है
सांसे भी कुछ भारी हैं
नयनों से निंदिया ओझल है
जागी रातें सारी हैं


आखिर मन के अंधकार का
अंत भला कैसे होगा
सुखद सवेरा देगा दस्तक 
या नित जीवन क्षय होगा?

©Anamika Pandey अंधकार
#Her
खिला आकाश है धरती खिली 
मौसम भी खिला खिला सा है
फिर भी मन के अंधकार का
उजलापन धुंधला सा है


जाने क्या जो साल रहा है
अन्दर ही अन्दर हमको
जाने किन कटु स्मृतियों ने
बांध रखा हदयान्तर को


क्या-क्या छूटा हाथ लगा क्या
लेखा-जोखा क्या करना
जो बीता सो बीत चुका है
बीते को फिर क्या जीना


मन खालीपन से बोझिल है
सांसे भी कुछ भारी हैं
नयनों से निंदिया ओझल है
जागी रातें सारी हैं


आखिर मन के अंधकार का
अंत भला कैसे होगा
सुखद सवेरा देगा दस्तक 
या नित जीवन क्षय होगा?

©Anamika Pandey अंधकार
#Her