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मैं ज़ब भी लिखना चाहूं तुम्हें तुम कोरे कागज पर उभर

मैं ज़ब भी लिखना चाहूं तुम्हें
तुम कोरे कागज पर उभर आना
मैं अगर लिख ना पाऊं,  हड़बड़ा जाऊं
तुम बस मंद मंद मुस्कुराते रहना
मुझे किसी भी तरह संभाले रखना...
एक-टक देखना और 
झांकना मासूम आँखों की गहराई मे
अगर दिख जाए उमड़ता सैलाब 
तो होठों से स्पर्श कर सोख लेना....
खारा, बेस्वाद,नमकीन सा पानी 
मगर शुद्धता मे गंगाजल सा पवित्र होगा
जो पूर्णतः परिभाषित करता हैं
मेरे और तुम्हारे वियोग की टिस को,
उस अखंड, असीमित, अविरल प्रेम को.........!

©Moksha
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Moksha

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