आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा आज फिर नींद को आंखों से बिछड़ते देखा, उन पे तुझसे जुड़ी बेचैनियों का कब्जा देखा। सोचा तू भी खुश होगी मुझे तड़पता छोड़ यहां, मैंने तुझे भी हर रात मेरे ही जैसे जागते हुए देखा। #Nind_ko_ankhon_se आज फिर #नींद को आंखों से #बिछड़ते देखा, उन पे तुझसे जुड़ी बेचैनियों का #कब्जा देखा। सोचा तू भी खुश होगी मुझे #तड़पता छोड़ यहां, मैंने तुझे भी हर रात मेरे ही जैसे जागते हुए देखा।