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ज़िंदगी की तपिश में ख्वाईशें सभी जलती रही, मि

 ज़िंदगी की  तपिश में  
ख्वाईशें  सभी  जलती रही,
मिल न सका सुकूँ दिल को, 
तिशनगी खलती रही!


रुठी रही  नींदे आँखों से, 
ख़्वाब थक कर  सो गए,
हसरतें आँसुओं में रात भर,
मोम सी पिंघलती रही!


पाने चली थी चाँद को,
हुआ जुगनू भी हासिल नहीं,
यूं  बैठ  अंधेरों  में  अकेले   
हाथ  मैं   मलती  रही!

©सुशील यादव "सांँझ"
  #जिंदगी_की_तपिश