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(5) कोई हकीम कहां है, मेरे साकी के सिवा। जहर‌ हाथ

(5)

कोई हकीम कहां है, मेरे साकी के सिवा।
जहर‌ हाथों से पिला दे कि कयामत तो नहीं।।

वक्त की बात है, अपना-पराया कोई नहीं।
दिल के रिश्ते हैं, अरे! कोई वसीयत तो नहीं।।

                                                            संवेदिता ✍

©Samvedita
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