दीपक जहाँ कदम पड़ते हैं मेरे तिमिर नहीं है टिकता आसानी से मिल जाता हूँ बाजारों में बिकता कोई जलाये घर आंगन में तो कोई मन्दिर में श्री गणेश में कोई जलाये छोटे बड़े शिविर में मेरे बिन शुभ कार्य न होते जान रहा जग सारा जब तक तेल है मेरे अंदर नहीं मैं तम से हारा चाँद सितारे सूरज रखते अंदर बहुत उजाला मैं छोटा हूँ फिर मेरा दिखता रूप निराला मेरे चाहने वाले अब भी दुनिया में बहुतेरे पछताता है इक दिन बेखुद जो मुझसे मुँह फेरे ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #दीपक