इश्क की बातें अब पुरानी हों गई, मीरा भी किसी और की दिवानी हों गई! अब रहा ना श्याम राधा का भी, झूठी वो प्रेम की कहानी हों गई! कैसे यकिन करूं आजकल के इश्क पे, सुबुत इश्क का जिस्म की कुर्बानी हो गई! गया वो दौर इंतजार का, मोहब्बत अब आनी-जानी हों गई! और मिशाल क्या-क्या दूं मतलबी इश्क का, खुदा-ए-मोहब्बत 'चक्कर चलानी' हों गई! बिकती हैं मोहब्बत पैसों में जनाब, आज मोहब्बत बदलती जुबानी हों गई! खैरियत तेरी अच्छी हैं "कांत" तूं ना बिका तेरी मेहरबानी हो गई! ©RKant #Matlabi_Ishq