इस ज़िंदगी से थोड़ी खुशियाँ उधार लो। जी भरके जी लो ज़िंदगी हर पल सँवार लो।। जितनी भी मिले खुशियाँ सारी समेट लो। मुस्कान की खुशबू भरी चादर लपेट लो।। जागीर नहीं खुशियाँ महलों या अमीरों की। दौलत है ख़जाना है अलमस्त फक़ीरों की।। माना कि ज़िंदगी में फाँका है फ़कीरी है। खुशियों को मगर खुलकर जीना भी जरूरी है।। तू वक्त के पहियों पर खुशियों की सवारी कर। ग़म को हरा के अपने तू ज़िंदगी प्यारी कर।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखंड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #ख़ुशियाँ