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बेबफा हरे हैं जख्म और वो खुश हैं ये देख-

बेबफा
हरे   हैं  जख्म  और  वो  खुश  हैं   ये  देख-देख  करके,
हमारी  बद्दुआएं  काम आयी हैं आखिर एक-एक  करके ।

उसने तो कहाँ    छोड़ी  थी  कसर   मुझे   बर्बाद  करने   में,
वो तो हम ही निकाल लाये खुद को, किसी तरह बचा करके।

आखिर इंतकाम कितना अंधा  बना देता है  आदमी  को,
वही दुश्मन बन जाता है ,जिसे देखा था कभी प्यार करके।

कितने भी सितम करलो "बादल", कभी तो इन्तहा होगी,
सूरज भी जरूर निकलेगा कभी, बादलों को सुखा करके।

मैंने  भी  नहीं  छोड़ी  है  जिद, खाकर  के  लाखों  ठोकर,
कोंपलें भी फूटेंगी जरूर,रख बीजों को जरा भिगा करके।

रखे हैं कितने  उपवास उसने  तिरी उम्र ए दराज के लिए,
तुझे   मिलेगा  कैसे  सुकून , उसके  आंशू   गिरा  करके । 

रचना- यशपाल सिंह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal' हरे   हैं  जख्म  और  वो  खुश  हैं   ये  देख-देख  करके,
हमारी  बद्दुआएं  काम आयी हैं आखिर एक-एक  करके ।

उसने   नहीं   छोड़ी  थी  कसर   मुझे   बर्बाद  करने   में,
मगर हम ही निकाल लाये खुद को, किसी तरह बचा करके।

आखिर इंतकाम कितना अंधा  बना देता है  आदमी  को,
वही दुश्मन बन7 जाता है ,जिसे देखा था कभी प्यार करके।
बेबफा
हरे   हैं  जख्म  और  वो  खुश  हैं   ये  देख-देख  करके,
हमारी  बद्दुआएं  काम आयी हैं आखिर एक-एक  करके ।

उसने तो कहाँ    छोड़ी  थी  कसर   मुझे   बर्बाद  करने   में,
वो तो हम ही निकाल लाये खुद को, किसी तरह बचा करके।

आखिर इंतकाम कितना अंधा  बना देता है  आदमी  को,
वही दुश्मन बन जाता है ,जिसे देखा था कभी प्यार करके।

कितने भी सितम करलो "बादल", कभी तो इन्तहा होगी,
सूरज भी जरूर निकलेगा कभी, बादलों को सुखा करके।

मैंने  भी  नहीं  छोड़ी  है  जिद, खाकर  के  लाखों  ठोकर,
कोंपलें भी फूटेंगी जरूर,रख बीजों को जरा भिगा करके।

रखे हैं कितने  उपवास उसने  तिरी उम्र ए दराज के लिए,
तुझे   मिलेगा  कैसे  सुकून , उसके  आंशू   गिरा  करके । 

रचना- यशपाल सिंह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal' हरे   हैं  जख्म  और  वो  खुश  हैं   ये  देख-देख  करके,
हमारी  बद्दुआएं  काम आयी हैं आखिर एक-एक  करके ।

उसने   नहीं   छोड़ी  थी  कसर   मुझे   बर्बाद  करने   में,
मगर हम ही निकाल लाये खुद को, किसी तरह बचा करके।

आखिर इंतकाम कितना अंधा  बना देता है  आदमी  को,
वही दुश्मन बन7 जाता है ,जिसे देखा था कभी प्यार करके।

हरे हैं जख्म और वो खुश हैं ये देख-देख करके, हमारी बद्दुआएं काम आयी हैं आखिर एक-एक करके । उसने नहीं छोड़ी थी कसर मुझे बर्बाद करने में, मगर हम ही निकाल लाये खुद को, किसी तरह बचा करके। आखिर इंतकाम कितना अंधा बना देता है आदमी को, वही दुश्मन बन7 जाता है ,जिसे देखा था कभी प्यार करके। #शायरी #बेबफा