राह नहीं आसान है चलना बड़ा ही दुर्गम ये जीवन है। पग-पग पर बाधाएं आएं ये जीवन एक कंटक वन है।। जाने क्या नियति में लिखा है कुछ न समझ में आता है। जो सोचूं होता ही नहीं ना सोचूं वो हो जाता है।। मृगमरीचिका में मन मेरा सदा भटकता रहता है। कहता नहीं किसी से कुछ भी खुद ही सब दुख सहता है।। अंधक वन सा जीवन मेरा दिखता नहीं प्रकाश जरा। फिर भी मैं दुर्भाग्य से अपने तिनका भर भी नहीं डरा।। निष्ठुर मेरा समय हुआ है या अभी परीक्षा बाकी है। इस जीवन गुरुकुल से मिलना कोई शिक्षा बाकी है।। रिपुदमन झा "पिनाकी" धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #परीक्षा