ढह गया अरमान उल्फ़त में ख़ुशी का, ढूँढ ना पाया कोई हल बेबसी का, ज़िन्दगी की अहमियत जाने बिना ही, राह हरगिज भी न चुनना ख़ुदकुशी का, द्वंद दुविधा के भँवर में फँसाकर ही, खेलता मन खेल फिर रस्साकसी का, तिरस्कृत हो बने कालीदास! तुलसी! चोट दिल पर खा चुके थे हमनशीं का, कब बदल जाएगी किस्मत कौन जाने, भूल से उपहास मत कर बेकसी का, कठिन मिहनत से पलटते दिन सभी के, राह मत चुनना कभी भी मयकशी का, पा लिया खुद में ही परमानन्द 'गुंजन', है मजा कुछ और ऐसी दिलक़शी का, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन ©Shashi Bhushan Mishra #ऐसी राह मत चुनना#