दो पल की खुशी क्या मिली, खुशी से आँखों को बरसते देखा है, दो पल की खुशी की चाह में, लोगों को ताउम्र तरसते देखा है। खुशी मिलती है हमें संयम, संतुष्टि, इंसानियत और संस्कार में, बच्चों के हँसी, किलकारियों में, गरीब और मज़लूमों के प्यार में। खुशी मिलती खुद्दारी से कमाई रोटी में, थककर सुकून की नींद में, कुदरत की ये अनमोल नेमत है, जो कभी बिकती नहीं बाज़ार में। धन-धान्य से धर द्वार संपन्न हो, गर खुशी नसीब नहीं होती है, खुशी हो तो नसीबा जगती है, खुशी नहीं तो नसीब भी सोती । 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 5 है..! 👉 आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है., आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद comment box में Done जरूर लिखें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!