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इंसानियत सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो  अपने अपने स

इंसानियत
सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 
अपने अपने सूरज ले लो ,
एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,
इस नफरत के साथ ।
चांद को भी काट डालो ,
चौदह टुकड़ों में ,
जिसको पसंद आये जो टुकड़ा,
उसे भी साथ ले लो ।
हवा भी रोक लेना सब,
दीवारें बनाकर ऊंची,
समंदर के भी हिस्से कर दो
बना लो नदियों  की भी सूची ।
करलो खुद को बंद दीवारों के घेरे में,
अपने अपने उजालों में,
अपने अपने अंधेरों में ,
बैठना फिर बंद करके अपने- अपने दरवाजे ! 
मत सुनना किसी के गीत, किसी की आवाजें !
झांकना भी मत कभी  झिर्रियों के कोरों से,
होना भी मत बेचैन कभी पड़ोस के शोरों से !
जाओ जियो अकेले जी सको तो !
जाओ पी लो अपनी नफरत पी सको तो !
और अगर ये असंभव लगे तो बताना !
फिर से मिलकर बैठेंगे साथ !
मगर मजहब घर छोड़ कर आना,
बस एक इंसान बन कर आना,
तब हम फिर से साथ-साथ जिएंगे,
एक सूरज-चाँद के साथ !
एक जमीन,एक हवा के साथ !
क्योंकि रब भी भेद नहीं करता है हम सबमें ! 
सबकी सांसें घुलती हैं इसी हवा में!
उसने तो नहीं बनाई तेरे और मेरे लिए अलग दुनियां,
इसलिए तुम कुछ बनो या न बनो ,
मगर इंसान जरूर बनना,
तुम्हारे पास चाहे कुछ हो या न हो,
मगर इंसानियत अपने पास रखना,
थोड़ी दया,थोड़ा प्यार,
थोड़ा अपनापन,थोड़ा व्यवहार,
बस इसी धरती से उपजे हैं,
और इसी में मिल जाना है,
यही एक हकीकत है, 
यही अंतिम ठिकाना है ।


यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh gusain badal' #Butterfly सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 

अपने अपने सूरज ले लो ,

एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,

इस नफरत के साथ ।
इंसानियत
सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 
अपने अपने सूरज ले लो ,
एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,
इस नफरत के साथ ।
चांद को भी काट डालो ,
चौदह टुकड़ों में ,
जिसको पसंद आये जो टुकड़ा,
उसे भी साथ ले लो ।
हवा भी रोक लेना सब,
दीवारें बनाकर ऊंची,
समंदर के भी हिस्से कर दो
बना लो नदियों  की भी सूची ।
करलो खुद को बंद दीवारों के घेरे में,
अपने अपने उजालों में,
अपने अपने अंधेरों में ,
बैठना फिर बंद करके अपने- अपने दरवाजे ! 
मत सुनना किसी के गीत, किसी की आवाजें !
झांकना भी मत कभी  झिर्रियों के कोरों से,
होना भी मत बेचैन कभी पड़ोस के शोरों से !
जाओ जियो अकेले जी सको तो !
जाओ पी लो अपनी नफरत पी सको तो !
और अगर ये असंभव लगे तो बताना !
फिर से मिलकर बैठेंगे साथ !
मगर मजहब घर छोड़ कर आना,
बस एक इंसान बन कर आना,
तब हम फिर से साथ-साथ जिएंगे,
एक सूरज-चाँद के साथ !
एक जमीन,एक हवा के साथ !
क्योंकि रब भी भेद नहीं करता है हम सबमें ! 
सबकी सांसें घुलती हैं इसी हवा में!
उसने तो नहीं बनाई तेरे और मेरे लिए अलग दुनियां,
इसलिए तुम कुछ बनो या न बनो ,
मगर इंसान जरूर बनना,
तुम्हारे पास चाहे कुछ हो या न हो,
मगर इंसानियत अपने पास रखना,
थोड़ी दया,थोड़ा प्यार,
थोड़ा अपनापन,थोड़ा व्यवहार,
बस इसी धरती से उपजे हैं,
और इसी में मिल जाना है,
यही एक हकीकत है, 
यही अंतिम ठिकाना है ।


यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh gusain badal' #Butterfly सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 

अपने अपने सूरज ले लो ,

एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,

इस नफरत के साथ ।