नैनों में सावन लगा , हृदय चैत्र वैशाख । फागुन में आवन कहें , टूटी वो भी शाख ।। मन का तो शृंगार है , पिया तुम्हारा प्यार । बिछुआ चूड़ी मेंहदी , सब तन का शृंगार ।। सावन भादों ही पिया , करते हो मनुहार । बारहो महीने बावरी , तरसे तेरा प्यार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR नैनों में सावन लगा , हृदय चैत्र वैशाख । फागुन में आवन कहें , टूटी वो भी शाख ।। मन का तो शृंगार है , पिया तुम्हारा प्यार । बिछुआ चूड़ी मेंहदी , सब तन का शृंगार ।। सावन भादों ही पिया , करते हो मनुहार । बारहो महीने बावरी , तरसे तेरा प्यार ।।