तुमसे बिछुड़ जाने के बाद भी तुमको बिसार देने का प्रयास नहीं करूँगा ऐसी कोई कसम तो, नहीं उठाई थी ‘मैंने’, तिसपर भी, कोई कड़ी रह गई है ऐसी, जो बॉंधती है मुझको-तुमसे तभी तो ‘मैं’ सर्वदा तुम संग बिताये पल-क्षणों को बीनकर, चुनकर, सजाकर बड़ी तन्मयता से याद करने लगता हूँ ‘तुमको’ निरन्तर!!!! हॉं कदाचित् यही सत्य है......कि तुम और मैं....नहीं नहीं....’हम’, ऐसे जुड़े रहें हैं, कुछ इतनी अंतरंगता से, कि प्रेम के भावुक सागर पर कसमें -वादों के किसी सेतु की आवश्यकता ही नहीं महसूसी ‘हमनें’। रक्ताभ आभा लिये, मंदसिक्त मुस्कान से सज्जित तुम्हारे होंठ, जिन्होने मुखर हो...अबतक, कुछ भी नहीं....कुछ भी तो नहीं कहा था ‘मुझसे’, किन्तु, तुम्हारे कमलवत् शब्दों की बाढ़ से भरे युगल नेत्र पटलों ने, बोझिल हो - बन्द होते - खुलकर, बार बार .....बहुत बार एक एक कड़ी ‘स्मरित’ है, कितना कुछ कहा है ’मुझसे’। हमारा और तुम्हारा ‘मैं’ से अलग करता रिश्ता, ‘हम’ से भी पार, कुछ.....हॉं.....कुछ कुछ, नयेपन से भरा, वह अविच्छिन्न सम्बन्ध, जो कहे - अनकहे से भी परे, कहीं एक बिन्दु पर जाकर, हुआ था स्थापित.....दृढ़ता से। नीत नये सिरे से, ढूँढ रहा हूँ, वही बिस्मृत ‘नींव’ । मनोज श्रीवास्तव नींव जो खो गाई है