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अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं आओ मुहब्बत को

 अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं
आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं

चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ
महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं

जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है
हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं
 अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं
आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं

चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ
महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं

जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है
हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं

अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं #शायरी