अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं