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तमाम गलियां कच्ची है मैं बिना मोजे के चलना चाहता

तमाम 
गलियां कच्ची है 
मैं बिना मोजे के चलना चाहता हूं 

तलवे छू ले मिट्टी को 
मैं ठंडा होना चाहता हूं

पांव पर आए धूल की चादर
रेत का घाघर होना चाहता हूं

आए खुशबू कण-कण से 
मैं रेगिस्तान होना चाहता हूं

बहे कोई नदी गहरी
फिर उसमें सिमटना चाहता हूं 

बनकर सरीखे सा शुष्क 
मुसाफिर टीलों में खोना चाहता हूं

राहत भरी सांस से आए 
मुझे मैं मिट्टी होना चाहता हूं 

तेरी गिरे कोई एक बूंद माथे पर 
मैं फूल रोहिड़ा होना चाहता हूं

देखे समंदर आंख उठाकर
मैं गुलाबी रेगिस्तान होना चाहता हूं | तमाम 
गलियां कच्ची है 
मैं बिना मोजे के चलना चाहता हूं 

तलवे छू ले मिट्टी को 
मैं ठंडा होना चाहता हूं

पांव पर आए धूल की चादर
तमाम 
गलियां कच्ची है 
मैं बिना मोजे के चलना चाहता हूं 

तलवे छू ले मिट्टी को 
मैं ठंडा होना चाहता हूं

पांव पर आए धूल की चादर
रेत का घाघर होना चाहता हूं

आए खुशबू कण-कण से 
मैं रेगिस्तान होना चाहता हूं

बहे कोई नदी गहरी
फिर उसमें सिमटना चाहता हूं 

बनकर सरीखे सा शुष्क 
मुसाफिर टीलों में खोना चाहता हूं

राहत भरी सांस से आए 
मुझे मैं मिट्टी होना चाहता हूं 

तेरी गिरे कोई एक बूंद माथे पर 
मैं फूल रोहिड़ा होना चाहता हूं

देखे समंदर आंख उठाकर
मैं गुलाबी रेगिस्तान होना चाहता हूं | तमाम 
गलियां कच्ची है 
मैं बिना मोजे के चलना चाहता हूं 

तलवे छू ले मिट्टी को 
मैं ठंडा होना चाहता हूं

पांव पर आए धूल की चादर