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कहां मंजिल मिलेगी उन्हें , दो पग चले ही नहीं। आ

कहां मंजिल मिलेगी उन्हें , दो  पग चले  ही नहीं। 
आगे कैसे बढ़ते गिरकर ,जो उठ खड़े  ही  नहीं।
हार तय थी मिलना उन्हें , जो रहे खुद बे खबर।
जीत  जाते  वो  कैसे  , खुद से  लड़े   ही  नहीं।

©K L MAHOBIA
  #मुक्तक -के एल महोबिया
klmahobia1677

K L MAHOBIA

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#मुक्तक -के एल महोबिया #शायरी

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