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Beautiful Moon Night बाँझ। बाँझ कहते हो उन्हें ,जि

Beautiful Moon Night बाँझ।
बाँझ कहते हो उन्हें ,जिन्होंने बेशक जन्म नहीं दिया किसी शिशु को....
लेकिन सृजित किया है रचनाओं का संसार....उकेरी हैं मनमोहक तस्वीरें....गढ़ा है कलात्मक कृतियों को....
मकान को घर बनाया है जिसने.... शिक्षा/संस्कारों से सुसज्जित कर आदम को इंसान बनाया है जिसने.... बेरंग जिंदगी में जिसने भरे हैं रंग....जिसने दी जिंदगी को सौन्दर्यमयी मुस्कान....वीरानगी को मधुर गान....सतरंगी सपनों को उड़ान....बाँझ हैं वो....?
क्योंकि पैदा नहीं कर सकी कोई संतान.... बढ़ा नहीं सकी तुम्हारे वंशबेल को....परन्तु अपने ओजस्वी व्यक्तित्व से , अपने कलात्मक/सृजनात्मक कृत्यों से बढ़ाया तुम्हारे खानदान का मान...
कितने कृतघ्न हो तुम ,कैसे करते हो नारीत्व का अपमान...?
प्रसव पीड़ा से गुजर कर मात्र शिशु का ही जन्म नहीं होता ,इसी प्रसव वेदना से पिघल कर जन्म लेती हैं रचनाएं भी हृदय के गर्भ से...
क्षुद्रों/विक्षिप्तों को रूहानी बातें कहाँ समझ में आती हैं , विकृत मानसिकता वालों ने ही 'बाँझ' शब्द की उत्पत्ति की....पुरूष को बेदाग रखा.... नारी का दामन दागदार किया... लानत है उन कुमाताओं पर भी ,जिन्होंने बच्चे पैदा करने को ही मातृत्व समझा... जो जन न सकीं शिशु उनका उपहास किया....हजारों लानतें तुम पर तुमने मातृत्व को शर्मसार किया...।
पीर पराई जो न समझे है गर यही मातृत्व तो बाँझ कहलाना सम्मान है मेरे लिए ,स्वीकार है मुझे तुम्हारे इल्जाम कि बाँझ हूँ मैं...।
हाँ नहीं जन्मा है मैंने कोई शिशु , पर मेरा वात्सल्य हर बच्चे में दिखाता है मुझे अपनी संतान , अपने/पराये की कसौटी से परे हर बच्चा लगता है मुझे अपना ही शिशु... समदृष्टि से सम्पूर्ण बच्चों पर उड़ेलती हूँ मैं अपना सम्पूर्ण प्यार/दुलार/ममता और आशीर्वाद... परमसन्तुष्ट है मेरा मातृत्व...।
तुम्हारे लिए भी शुभकामनाएं है मेरी कि तुम भी वाकई 'माँ 'बनों , बच्चे पैदा करने व माँ बनने के अंतर को अपनी अंतर्दृष्टि से समझो... अपनी संतान को अपने अहंकार का पर्याय व जागीर न समझो , बल्कि स्वत्रंत आत्मा समझ अपने बच्चों का सम्मान करो , सब पर न सही अपने बच्चों पर तो कमसे कम लुटाओ अपना निःस्वार्थ प्रेम/ममता ,दो उन्हें उत्कृष्ट गुणवत्तापूर्ण शिक्षा /उत्तम संस्कार , जिससे समाज हो परिष्कृत ,  पल्लवित/पुष्पित हों उच्च विचार , व्यवहारिक के साथ ही अपनी सन्तान को बनाना संवेदनशील भी , ताकि समाज में बहे संवेदनशील अपनत्व की बयार.....अपने बच्चों के मालिक नहीं मार्गदर्शक बनो...।
मैं तो बाँझ हूँ तथाकथित समाज ( वैसे सत्य तो ये है कि दर्द तथाकथित अपने ही देते हैं समाज को व्यर्थ बदनाम किया जाता है)की दृष्टि में ,तुम्हारी तरह माँ नहीं , मैं तो रचनाकार हूँ... साहित्य/कला/सनातन संस्कृति/संस्कारों/पर्यावरण का संरक्षण/सम्वर्धन है मेरा धर्म.... रचनात्मक सृजन है मेरा कर्म....तभी तो किसी बच्चे पर जताती नहीं अपना अधिकार , बल्कि बच्चों के साथ ही सम्पूर्ण सृष्टि से ,प्रकृति के हर शै से करती हूँ...
सिर्फ प्यार... प्यार... और प्यार।
(स्वरचित: अनामिका अर्श )

©अर्श
  #beautifulmoon