Nojoto: Largest Storytelling Platform

***भटकते राही*** मध्य रह जो दूसरों के, पर सदा अपन

***भटकते राही***

मध्य रह जो दूसरों के, पर सदा अपनत्व कमाते ।
जाने के पश्चात वे जन, इस जहां को याद आते ।
क्या मिला हमको यहां, मर मार के लड़के लड़ाके ।
हमने भी देखे सिकंदर, कई खाली हाथ जाते ।
तज गुलामी मन के स्वामी, विश्व पर इक छाप  छोड़ो ।
शिक्षा पा नौकर बन जाने, का यह अभिशाप छोड़ो ।
ज्ञान का दीपक दिखाकर, भटके को तुम राह देना ।
मारकर पापी को जग से, झूठे शोक विलाप छोड़ो ।
बढ़ाके चोटी लगा लंगोटी, मंदिरों के जाप छोड़ो । 
मिल रही हूरें खुदा खुश, के झूठे ये संताप छोड़ो ।
कर गुजर गई जो सदी कुछ, उसका पश्चाताप छोड़ो ।
हर हाथ में डोर नफरत, कहते पहले आप छोड़ो ।
चंद समुदाय जहां के, हैं टकराए यहां पर ।
है धार्मिक गुटबाजी, ईश्वर ना मिलते कहां पर ।
है समावेशी जो सब में, सब उसी को खोजते हैं ।
ना पता ना है ठिकाना, पढ़ नमाजे भेजते हैं ।
क्या था लाना तुझे जो, रहे वहीं तेरा गया है ।
क्या लगा तू खोजने जो , खुद में खोके रह गया है ।
आज है जन-जन दुखी यहां, अपने सन्मुख दूसरे से ।
जी रहा तन्हा अकेला, ना जुड़े दूजे सिरे से  ।
अपनी-अपनी हैं व्यथाएं, अपनी-अपनी हैं कथाएं ।
दुख के आंसू छिपाकर, झूठे सुख में मुस्कुराएं ।
आओ अब सब संग मिलके, नए तरक्की मार्ग खोजें 
या गुजरा कल निहारें, फिर वहीं घाव कुरेदें ।
अब यह कर्तव्य तेरा, कल दिखा या कल बताना ।
भाग्य अपनी पीढ़ियों का, कर सुनिश्चित तुमको जाना ।
खेलते जो घर तुम्हारे , गोद में पुचकार लेना 
इनको विरासत में धरम ना, सिर्फ सच्ची राह देना ।


                                        ***अचल कुमार सिंह***

©अचल कुमार सिंह #लौट_आओ_यार 

#Walk
***भटकते राही***

मध्य रह जो दूसरों के, पर सदा अपनत्व कमाते ।
जाने के पश्चात वे जन, इस जहां को याद आते ।
क्या मिला हमको यहां, मर मार के लड़के लड़ाके ।
हमने भी देखे सिकंदर, कई खाली हाथ जाते ।
तज गुलामी मन के स्वामी, विश्व पर इक छाप  छोड़ो ।
शिक्षा पा नौकर बन जाने, का यह अभिशाप छोड़ो ।
ज्ञान का दीपक दिखाकर, भटके को तुम राह देना ।
मारकर पापी को जग से, झूठे शोक विलाप छोड़ो ।
बढ़ाके चोटी लगा लंगोटी, मंदिरों के जाप छोड़ो । 
मिल रही हूरें खुदा खुश, के झूठे ये संताप छोड़ो ।
कर गुजर गई जो सदी कुछ, उसका पश्चाताप छोड़ो ।
हर हाथ में डोर नफरत, कहते पहले आप छोड़ो ।
चंद समुदाय जहां के, हैं टकराए यहां पर ।
है धार्मिक गुटबाजी, ईश्वर ना मिलते कहां पर ।
है समावेशी जो सब में, सब उसी को खोजते हैं ।
ना पता ना है ठिकाना, पढ़ नमाजे भेजते हैं ।
क्या था लाना तुझे जो, रहे वहीं तेरा गया है ।
क्या लगा तू खोजने जो , खुद में खोके रह गया है ।
आज है जन-जन दुखी यहां, अपने सन्मुख दूसरे से ।
जी रहा तन्हा अकेला, ना जुड़े दूजे सिरे से  ।
अपनी-अपनी हैं व्यथाएं, अपनी-अपनी हैं कथाएं ।
दुख के आंसू छिपाकर, झूठे सुख में मुस्कुराएं ।
आओ अब सब संग मिलके, नए तरक्की मार्ग खोजें 
या गुजरा कल निहारें, फिर वहीं घाव कुरेदें ।
अब यह कर्तव्य तेरा, कल दिखा या कल बताना ।
भाग्य अपनी पीढ़ियों का, कर सुनिश्चित तुमको जाना ।
खेलते जो घर तुम्हारे , गोद में पुचकार लेना 
इनको विरासत में धरम ना, सिर्फ सच्ची राह देना ।


                                        ***अचल कुमार सिंह***

©अचल कुमार सिंह #लौट_आओ_यार 

#Walk