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तेरी वो चाहत ही थी, जिसने मुझे संवारा था, तेरी

तेरी वो  चाहत  ही थी, जिसने  मुझे  संवारा था,
तेरी मासूमियत पर ही तो, अपना दिल  हारा था।

भटक रहा था मायूस होकर, इश्क़ की गलियों में,
तेरी चाहत मुझ डूबते को, तिनके का सहारा था।

तुझे पाकर  दिल में, खुशियों के  फूल खिल उठे,
तेरी चाहतों के  बीच छुपा, वो चेहरा  हमारा था। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-119 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 4-6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
तेरी वो  चाहत  ही थी, जिसने  मुझे  संवारा था,
तेरी मासूमियत पर ही तो, अपना दिल  हारा था।

भटक रहा था मायूस होकर, इश्क़ की गलियों में,
तेरी चाहत मुझ डूबते को, तिनके का सहारा था।

तुझे पाकर  दिल में, खुशियों के  फूल खिल उठे,
तेरी चाहतों के  बीच छुपा, वो चेहरा  हमारा था। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

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