तुम कहो तो हँसा भी दूँ मैं तुम कहो तो गुदगुदा भी दूँ मैं तुम कहे तो प्रेयसी के गजरे मैं एक गुलाब लगा भी दूँ मैं पर यहाँ तो बड़े-बड़े दिग्गजों का हुजूम है यहाँ मेरा नाम नहीं? यहाँ तो इन कृतियों के महाग्रंथ है यहाँ मेरा काम नहीं ? मुझे रोकती है आँखों की बेबसी मुझे पुकारती है दिलों की खामोशी मेरी कलम चलती वहीं..... जो कहानी रह गयी अधूरी। पारुल शर्मा तुम कहो तो हँसा भी दूँ मैं तुम कहो तो गुदगुदा भी दूँ मैं तुम कहे तो प्रेयसी के गजरे मैं एक गुलाब लगा भी दूँ मैं पर यहाँ तो बड़े-बड़े दिग्गजों का हुजूम है यहाँ मेरा नाम नहीं? यहाँ तो इन कृतियों के महाग्रंथ है यहाँ मेरा काम नहीं ?